दो टूक कहो

मुँह पर ताला क्या मजबूरी,
खुलकर बोलो यार मुंगेरी।
जोड़ घटा का वक्त नहीं है,
सही गलत का भेद जरूरी।
सच को सच कहने का ज़ज्बा,
और झूठ को झूठ कहो।
किससे डरना क्योंकर डरना,
सही बात दो टूक कहो।
मौन स्वीकृति और समर्थन,
दिखला रहा प्रेम प्रदर्शन।
चेहरे की धुँधली रेखाएँ,
दिखला देगा उजला दर्पण।
आँख के आंसू सूख न जायें,
शिथिल न हों कोमल स्पंदन।
निहित स्वार्थ की कारा तोड़ो,
झूठमूठ के सारे बंधन।
कलमकार का फर्ज़ यही है,
सच को केवल सच बतलायें।
गहन तिमिर का मंथन करके,
झूठ का बादल दूर भगायें।।

  • नरेन्द्र सिंह नीहार
    नई दिल्ली

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