भर रहा है समय प्राण में गीत को, भूल कर वेदना साध संगीत को। भोर का शीश है रेत के पाँव में , गंध सौंधी उड़े खेत में गाँव में। खग सभी कोटरों से निकलने लगे, खोल कर पँख वे फिर मचलने लगे। फाँदने वे लगे दर्द की भीत को।। भर रहा है समय प्राण में…. खेजड़ी के तले चाँद क्यूँ रुक गया। ये गगन भी धरा की तरफ़ झुक गया मंद सी पड़ गई साँझ की वात भी केसरी-केसरी घुल रही रात भी बात मन की कहो आज…
Read MoreCategory: गीत
धारा के विपरीत उतरना है
आओ साथी करें मरम्मत नाव की धारा के विपरीत उतरना है l गड़बड़ मौसम,तेज़ आधियाँ टूटी है पतवार फ़ँसे हुए हैं इस तट पर जाना होगा उस पार मन में संशय पैदा करती हैं ऊँची लहरें किन्तु लक्ष्य से पूर्व कहो कब पथिक कहीं ठहरे आधे रस्ते में रुकना स्वीकार नहीं अंतिम साँस तलक दम भरना है ll माना लोग डराएंगे पर हमें नहीं डरना नकारात्मक होकर के बिन मौत नहीं मरना मौसम सदा नहीं रहता है यूँ बिगड़ा-बिगड़ा इच्छाशक्ति के आगे तूफान करेगा क्या …
Read Moreगीत
अपनेपन के प्रबल भाव से,सराबोर परिवार रहे। बजे जीत का बिगुल सदा ही,नहीं हृदय में हार रहे।। खिड़की कहती धरती देखो,जहाँ उजाला स्याह नहीं। करना ज्यादा उछल कूद मत,सड़क कटी यह राह नहीं। फूँक फूँक कर कदम बढ़ें सब,अम्बर तक विस्तार रहे।।1 विषम परिस्थितियों में भी प्रिय,अपने पथ पर डटे रहो घर की दीवारें कहती हैं,अपनों से मत कटे रहो पथ प्रशस्त जो करे सभी का,उसी मन्त्र को गढ़े रहो हर मुश्किल को सरल करें जो,कर में वह हथियार रहे।।2 अपने अंक समेट सभी के,सुख दुख भी…
Read Moreआकर तुम मत जाना
आकर तुम मत जाना साजन, आकर तुम मत जाना…. जब आँगन में मेघ निरंतर झर-झर बरस रहे हों| ऐसे में दो विकल हृदय मिलने को तरस रहे हों| जब जल-थल सब एक हुए हों, धरती-अम्बर एकम, शोर मचाता पवन चले जब छेड़-छेड़ कर हर दम| ऐसे में तुम आना साजन! ऐसे में तुम आना, आकर तुम मत जाना साजन………. कंपित हो जब देह, नेह की आशा लेकर आना| प्रेम-मेंह की एक नवल परिभाषा लेकर आना| लहरों से अठखेली करता चाँद कभी देखा है? या आतुर लहरों का उठता नाद कभी देखा है? चंदा…
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