गजल

ख़ुद ही रोयें, ख़ुद मुस्काने लगते हैं इश्क़ में डूबे लोग दिवाने लगते हैं चार ही लोगों का क़िस्सा है सारे दिन जब चाहे तब बात बनाने लगते हैं आकर बैठो पास मेरे और सुन लो तुम कैसे-कैसे ख़्वाब सताने लगते हैं जगते हैं दिन रात न जाने क्यों ये लोग मुझको तो ये लोग दिवाने लगते हैं तेरे प्यार में पड़कर हमने ये जाना ख़ुश होकर क्यों अश्क बहाने लगते हैं रूप बदल लेने से आख़िर क्या होगा रंग असल ही लोग दिखाने लगते हैं रिश्तों पर पैसे ने…

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आकर तुम मत जाना

आकर तुम मत जाना साजन, आकर तुम मत जाना…. जब आँगन में मेघ निरंतर झर-झर बरस रहे हों| ऐसे में दो विकल हृदय मिलने को तरस रहे हों| जब जल-थल सब एक हुए हों, धरती-अम्बर एकम, शोर मचाता पवन चले जब छेड़-छेड़ कर हर दम| ऐसे में तुम आना साजन! ऐसे में तुम आना, आकर तुम मत जाना साजन………. कंपित हो जब देह, नेह की आशा लेकर आना| प्रेम-मेंह की एक नवल परिभाषा लेकर आना| लहरों से अठखेली करता चाँद कभी देखा है? या आतुर लहरों का उठता नाद कभी देखा है? चंदा…

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