ट्यूशन

अभिषेक ग्यारहवीं के छमाही परीक्षा में फेल हो गया | हालांकि इस परीक्षा का कुछ तत्कालीन प्रभाव नहीं होता और असली परीक्षा तो फ़ाइनल का ही माना जाता है लेकिन अभिषेक के परिवार वालों के लिए यह एक बड़ी दुर्घटना थी | क्योंकि हाईस्कूल टॉप करने के बाद अभिषेक से और बेहतर करने की उम्मीद थी | परिवार वालों की उदासी देखकर पड़ोसियों ने भी ताड़ लिया कि मामला क्या है | फलस्वरूप वो भी बहुत दुःखी हो गए क्योंकि पिछले सात महीने से अभिषेक का उदाहरण दे कर वो अपने लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के लिए खूब कोस रहे थे,खास कर जब उन लोगों के बच्चे सुबह पढ़ने के लिए नहीं उठ पाते थे | उन्हें अभिषेक के फेल होने से ज्यादा दुःख इस बात का था कि अब किसका उदाहरण देकर अपने लड़कों को पीटेंगे ?”यह कैसे हो सकता है ? ”  यह प्रश्न न केवल घरवालों बल्कि गाँववालों को भी हैरान कर रहा था | अभिषेक की पढ़ाई-लिखाई पर किसी को भी शक नहीं था ,हाईस्कूल में फ़र्स्ट डिविजन लाकर उसने सबका ध्यान पहले ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया था,और अब शहर के नामी स्कूल में दाखिले के बाद तो लोगों को विश्वास ही हो गया था कि यह लड़का कुछ करके निकलेगा |

हाँ अगर किसी को अभिषेक की क्षमता पर थोड़ा भी डाउट था तो वो थे अभिषेक के पापा छोटेलाल के जिगरी दोस्त सिद्धनाथ उर्फ़ पहलवान | पहलवान किसी से कहते तो कुछ नहीं थे, लेकिन उनका मानना था कि दसवीं में अभिषेक का तुक्का लग गया | इसका स्पष्ट कारण भी उन्होंने ढूढ़ कर अपने पास सुरक्षित रख लिया था | दरअसल पहलवान का लड़का सनी अभिषेक का सहपाठी था, जो हाईस्कूल में लटक गया था | इस घटना ने पहलवान को हिला कर रख दिया | रिजल्ट वाले दिन उनको ऐसा लगा जैसे कि किसी ने जोरदार धोबीपाट मारकर चित्त कर दिया हो | उस दिन से पहलवान का  मेहनत पर से भरोसा उठ गया क्योंकि उनका विश्वास था कि हाईस्कूल परीक्षा की तैयारी में सनी से ज्यादा मेहनत गाँव में किसी लड़के ने नहीं की थी | सनी की मेहनत पर घर में किसी को शक नहीं था | यह सौ प्रतिशत सही था कि सनी बहुत पढ़ाई करता था | लेकिन यह भी सही था कि परीक्षा के दौरान भी वो कोर्स किताबों से ज्यादा सरस सलिल और मनोहर कहानियाँ पढ़ा करता था | पहलवान जी दूसरे कमरे में लेटे-लेटे खाली कमरे का जलती हुई ट्यूबलाइट देखकर सनी के मेहनत का अंदाजा लगाते रहे और खुद उनके दिमाग की बल्ब कभी जल नहीं पायी |

शहर का स्कूल था ,अंग्रेजी मीडियम के भी बच्चे थे | बस यही सोचकर छोटे लाल कभी-कभी बेटे के डिविजन को लेकर थोड़ा चिंतित जरूर हो जाते थे  फिर भी उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि लड़का छमाही में एक विषय में फेल हो जाएगा | दसवीं में अपने स्कूल में टॉप करने वाला लड़का सिर्फ छः महीने में इतना लापरवाह हो सकता है ? या कोई और कारण है ? मध्यमवर्गीय परिवार में लड़के का हाईस्कूल पास होना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है | और इंटर में दाख़िला दिलाने के बाद से ही घरवाले सपने देखना शुरू कर देते हैं | घरवालों की उम्मीद के पौधे यहाँ से बड़े होने शुरू होते हैं | पास होने वाले लड़कों को उनके डिविजन के हिसाब से भविष्य का प्रशासनिक अधिकारी ,डॉ अथवा इंजीनियर या सरकारी क्लर्क मान लिया जाता था | छोटे लाल की उम्मीदें अभिषेक के ऊपर न केवल टिकी भर थी, बल्कि दिन-प्रतिदिन उसी तरह से बढ़ती जा रही थी जैसे अमरबेल किसी दीवार  का सहारा पाकर ऊपर उठता जाता है | अभिषेक के मम्मी-पापा ही नहीं बल्कि दोस्त-रिश्तेदार भी सोचते थे कि अभिषेक के नंबरों का ग्राफ अब नीचे नहीं आने वाला | लेकिन यह क्या अभिषेक ने सबके एक्ज़िट पोल पर पानी फेर दिया | एक घटना ने उस किशोर को उन सभी के सपनों को तोड़ने का अपराधी बना दिया जिन सपनों के बारे में उसे खुद भी कुछ पता नहीं था |

ग्यारहवीं की छमाही में लड़खड़ाने के बाद घरवालों को लगने लगा कि कभी जीनियस कहलाने वाला अभिषेक अब सामान्य लड़का होकर रह गया है | लेकिन यह सत्य नहीं था | अभिषेक को खुद भी विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सब कैसे हो गया | परीक्षा की तैयारी में उसने कोई कसर नहीं छोड़ा था | सभी पेपर भी बढ़िया हुए थे | यहाँ तक कि उत्तर मिलाने के बाद उसे उसी समय विश्वास हो गया था कि ठीक-ठाक नंबर से पास हो जाऊँगा | फिर केमेस्ट्री में चार नंबर से फेल होना उसकी समझ से परे था  |

हाँ, यह भी बात सही है कि अभिषेक के सहपाठी घुमा-फिरा कर इस बात पर जोर देते रहे कि अभिषेक को क्लास टीचर वर्मा मास्टर के यहाँ ट्यूशन पढ़ना चाहिए | रिजल्ट आने के बाद अभिषेक उन बातों में छुपे रहस्य को समझने का प्रयास कर रहा था, लेकिन अभिषेक का कोमल ह्रदय यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि भला कोई मास्टर अपने विद्यार्थियों को जान बूझकर इतना कम नंबर दे सकता है ? | क्या कोई मास्टर अपने होनहार बच्चों को अपने यहाँ ट्यूशन पढ़ने के लिए बाध्य कर सकता है ? |  “नहीं ऐसा नहीं हो सकता ” उसके दिल से यहीं आवाज निकलती थी | अगर ऐसा ही करना होता तो वर्मा मास्टर मासिक टेस्ट में भी तो फेल कर सकते थे ?|  ऐसे  कई प्रश्न अभिषेक के मन में कई दिनों से उमड़ रहे थे | लेकिन हर बार वो इन प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने के बजाय इसे दबा देना बेहतर समझता था |

दरअसल वो उस स्कूल से पढ़कर आया था जहाँ के मास्टरों की सुन्दर छवि उसके मन से उतरती ही नहीं थी | वहाँ के मास्टर उसे एक साधारण छात्र नहीं बल्कि अपने बेटे जैसा प्यार देते थे और उसकी हर ग़लतियों पर उसे प्यार से समझाते थे | ट्यूशन वहां भी पढ़ाया जाता था लेकिन ट्यूशन न पढ़ने बावजूद भी अभिषेक को अन्य छात्रों से कभी अलग व्यवहार होने का भान नहीं हुआ | अभिषेक सोच रहा था, कि एक बार तो स्काउट ट्रेनिंग के दौरान जानबूझकर भगवती मास्टर को ऐसा धक्का दिया कि वो मुँह के बल गिर पड़े | नाक से खून निकलने लगा | अगले दिन अभिषेक की क्लास में जमकर पिटाई हुई | अभिषेक को डर था कि दस दिन बाद रिजल्ट आएगा कहीं अंग्रेजी में फेल न कर दें लेकिन रिजल्ट आने पर सबसे अच्छा नंबर अभिषेक का था | हर मास्टर को विद्यार्थियों के प्रति अपना मूल कर्तव्य अच्छे से मालूम था | व्यक्तिगत खीझ कभी-कभी स्वाभाविक थी लेकिन व्यक्तिगत खीझ के कारण किसी के ईमानदार प्रयास पर पानी फेर देना कम से कम वहां के मास्टरों के खून में नहीं था जहाँ से अभिषेक हाईस्कूल पास करके आया था |

लेकिन अभिषेक ने अब तक जो दुनिया देखी थी, वो बहुत छोटी थी | उस दुनिया के लोगों के लिए शायद पैसा ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रहा होगा | लेकिन उससे अलग भी दुनिया है | जहाँ लोगों की नजर में पैसा ही सब कुछ है और वो येन केन प्रकारेण इसे इकट्ठा करने के प्रयास में लगे रहते हैं |

अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हर जगह हैं चाहे कोई राजनीति का क्षेत्र हो ,चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो ,चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो अथवा कोई भी अन्य क्षेत्र हो | इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्मा मास्टर अभिषेक को अपने यहाँ ट्यूशन पढ़ाना चाहते थे | जिस तरह दुकानदार ललचाई नज़रों से बाजार में घूमने वाले हर आदमी को अपना ग्राहक समझते हैं ,वैसे ही वर्मा मास्टर हर वर्ष ग्यारहवीं में आये हुए होनहार बच्चों पर नजरें गड़ाये रहते थे |

यह केवल एक वर्मा मास्टर तक ही सीमित नहीं था और भी कई मास्टर थे जो अपने-अपने दाँव-पेंच से विद्यालय को व्यापार का अड्डा बनाये हुए थे और सुदूर गाँव से आने वाले भोले-भाले होनहार बच्चों से मोल-भाव करते रहते थे | पहले मासिक टेस्ट में बढ़िया नंबर लाने के बाद से ही वर्मा मास्टर की नजर में अभिषेक चढ़ गया था | अभिषेक से कम नंबर पाने वाले कई लड़के वर्मा मास्टर के यहाँ आना-जाना शुरू कर चुके थे | चूँकि हॉस्टल में रहने वाले हर लड़कों को उनके सीनियर बीड़ी-सिगरेट-गुटखा के साथ-साथ विद्यालय की हर अच्छी-बुरी बातें समझा देते हैं अतः हॉस्टल के लड़कों को पहले दिन से ही पता था कि इंटरमीडिएट की इस वैतरणी को पार करने के लिए वर्मा मास्टर की पूँछ की पकड़नी ही पड़ेगी |अभिषेक गाँव से आया था ,उसे मास्टरों द्वारा बनायें गए इस नियम की कोई जानकारी नहीं थी | हालाँकि वर्मा मास्टर केवल 200 रूपये महीने के लाभ के लिए अभिषेक को अपने यहाँ ट्यूशन नहीं पढ़ाना चाहते थे बल्कि उन्हें  विश्वास था कि अभिषेक जैसा जीनियस लड़का उनके यहाँ पढ़ते हुए बारहवीं टॉप करेगा तो उसके नाम का इस्तेमाल करके को अपनी ट्यूशन की दुकान और बढ़िया चला सकते हैं |

सभी संभावनाओं को नकारने के बावजूद भी अभिषेक को इस परेशानी का हल तो निकालना ही था क्योंकि अभी आगे वार्षिक परीक्षा है | अगर ऐसा ही कुछ ऊपर-नीचे हो गया तो एक साल बर्बाद होने का डर है |  अगले दिन अभिषेक अपने चेहरे पर थोड़ी उदासी लिए क्लास रूम के बाहर बैठ कर मास्टर जी के आने का इंतज़ार कर रहा था कि सहसा पीछे से कंधे पर किसी ने हाथ रखा |अभिषेक ने मुड़ कर पीछे देखा तो गुरप्रीत था | अभिषेक ने धीरे से गुरप्रीत के हाथ पर हाथ रखा तो गुरप्रीत मुस्कुराते हुए आगे आ गया |अभिषेक की हालत उस आदमी जैसी थी जिसके घर में बेटी की शादी से पहले चोरी हो जाय और जिसे बदहाली में भी एक नए सिरे से तैयारी करनी पड़े |

अभिषेक के पास अभी एक और मौका था वार्षिक परीक्षा में थोड़ा अधिक मेहनत करके वो अपना जलवा फिर से कायम कर सकता था लेकिन फिर भी वो थोड़ा डरा-डरा था क्योंकि मेहनत में तो उसकी कभी कमी रही ही नहीं | थोड़ी देर खड़े-खड़े चुटकुले सुनाने के बाद  गुरप्रीत अभिषेक के पास ही बैठ गया और उसके मन में उठ रही लहरों की ऊँचाइयों का अंदाजा लगाने लगा | गुरप्रीत अपने दोस्त की परेशानी को भाँप कर अभिषेक को यहाँ के मास्टरों की पूरी कहानी साफ-साफ़ शब्दों में कह डाला | अंत में उसने जोर देकर बोला कि वर्मा मास्टर के यहाँ ट्यूशन पढ़ ही लो ,दोनों यार साथ-साथ चलेंगे |

अभिषेक की एक परेशानियाँ हो तब ना ट्यूशन पढ़ लें | ट्यूशन के पैसे कहाँ से आएँगे ? | बड़ी मुश्किल से घरवाले स्कूल का फीस भर पाते थे | ये सारी वो बातें थी जो अभिषेक गुरप्रीत को बता भी नहीं पा रहा था | अभिषेक ने मुस्कुराते हुए बोला, “सोचूंगा दोस्त | गुरप्रीत खुश हो गया | उसे अपने साथ जाने वाला एक साथी मिल गया पर इससे अधिक ख़ुशी उसे इस बात की थी कि अभिषेक ग्यारहवीं में पास हो जायेगा | उसे अचानक से याद आ गया कि ट्यूशन न पढ़ने की जिद में ही उसका बड़ा भाई मनप्रीत ग्यारवीं में फेल हो गया था | हालाँकि यह बात भी सच थी कि फेल होने के बाद मनप्रीत ने अपने क्लास टीचर शुक्ला जी का कम्बल परेड करवा दिया | उस शाम घर आकर अभिषेक ने अपने पिता छोटेलाल को यह बात बता दिया | छोटेलाल थोड़े हिचकिचाए लेकिन अभिषेक की माँ ने उन्हें मना लिया | उस रात अभिषेक को पता चला कि शाम को पापा के जेब से पैसे निकालने वाली माँ कितनी दूरदर्शी है | माँ ने कई जगह से सिक्के और कुछ रूपये निकाल कर बेटे की हथेली पर धर दिया और उसके आँखों से छलकते  हुए गंगाजल को अपने आँचल में समेट लिया |

परिस्थितियों से हारा हुआ अभिषेक अगले दिन वही करता है जो उस वक्त की माँग थी | इस बात को धीरे-धीरे तीन महीने बीत गए | अभिषेक ,वर्मा मास्टर के यहाँ आता-जाता रहा | वर्मा मास्टर अपने घर पर ही क्लास रूम बना कर पूरी ईमानदारी से बच्चों को पढ़ाते थे | कभी-कभी ऐसा लगता था कि उनकी नियुक्ति की इसी शर्त पर हुई कि बच्चों को पढ़ाने का काम घर पर करेंगे | स्कूल तो केवल अटेंडेंस लेने और देने आएंगे | उनके यहाँ पढ़ने वाला हर स्टूडेंट परीक्षा से एक सप्ताह पहले बहुत सक्रिय हो जाता था | उनकी उत्सुकता इस बात को लेकर रहती कि मास्टर जी परीक्षा में आने वाले प्रश्नों को जल्द से जल्द बता दें | लेकिन वर्मा मास्टर ने यह गलत काम कभी भी नहीं किया | उन्होंने स्टूडेंट्स को यह कभी नहीं बताया कि प्रश्न-पत्र में कौन-कौन से प्रश्न आएँगे | हाँ बातों-बातों में वो यह संकेत दे देते थे कि इस बार प्रश्न-पत्र में कौन-कौन सा प्रश्न नहीं आने वाला है | इतना जान लेने के बाद स्टूडेंट अपने आप अंदाजा लगा लेते थे कि कौन-कौन से प्रश्नों के आने की उम्मीद अधिक है | स्टूडेंट्स अंदाजा भले लगा लें लेकिन वर्मा मास्टर ने किसी बच्चों को परीक्षा से पूर्व प्रश्नो को कभी नहीं बताते थे | अतः वो प्रिंसिपल के सामने हमेशा गंगाजल लेकर कसम खाने को तैयार रहते थे जब कहीं से यह बात निकलती थी कि वर्मा मास्टर अपने यहाँ ट्यूशन पढ़ने वालों को प्रश्न-पत्र परीक्षा से पहले ही बता देते हैं |

खैर परीक्षा का दिन भी आया | प्रश्नों को हल करने के लिए अभिषेक को अधिक मेहनत नहीं करना पड़ा | गणित और विज्ञान से सारे प्रश्न-पत्र  बहुत अच्छे हुए | वर्मा मास्टर की इज़्ज़त करने वाले मास्टरों की ही क्लास में ड्यूटी लगी थी अतः उन लोगों ने भी विद्यार्थियों की सारी सुविधाओं का ध्यान रखा गया | गुरप्रीत को तो भौतिक विज्ञान की परीक्षा में वर्मा मास्टर ने 15 मिनट एक्स्ट्रा भी दिलवाया ताकि यदि अगर उत्तर आता है तो पूरे प्रश्नों को हल करे | वर्मा मास्टर के इस उदारता की अगले दिन बड़ी चर्चा हुए लेकिन गुरप्रीत का कहना था कि उसके भाई मनप्रीत ने अपने तीन दोस्तों के साथ परीक्षा के एक दिन पहले शाम को वर्मा मास्टर जी को रास्ते में रोक कर के उनसे नमस्ते किया था | उसी नमस्ते का प्रभाव है जो मास्टर जी ने उसे इतना टाइम दिलवाया |

परीक्षा संपन्न हो गयी | पंद्रह दिन बाद रिजल्ट आना था | रिजल्ट ने नाम पर सबको उत्सुकता थी  लेकिन अभिषेक को कुछ अधिक थी | अभिषेक ने मेहनत भी बहुत किया |अंततः रिजल्ट आया और अभिषेक ने ग्यारहवीं में टॉप किया | गाँव वाले बहुत खुश हुए ,घरवाले बहुत खुश हुए पर अभिषेक ज्यादा खुश न था | उसके नजरों के सामने तो पूरी कहानी एक बार फिर गुजर गयी | वो बिना ट्यूशन के पास हो सकता था और होता तो उसे और अधिक ख़ुशी मिलती |

बहरहाल रिजल्ट आने के तीसरे दिन एक किलो रसगुल्ला और गुरप्रीत को साथ लेकर दोनों दोस्त वर्मा मास्टर के घर पहुँच गए | अभिषेक का जाने मन बिल्कुल न था लेकिन छोटेलाल ने कहा कि गुरु जी का मुंह मीठा होना चाहिए | गुरु धरती पर भगवान् से भी बढ़कर होते हैं |अभिषेक उनके घर पहुँचा ,पैर छूकर बैठ गया | चूँकि आज दोनों ट्यूशन पढ़ने तो आये नहीं थे इसलिए उनका स्वागत मेहमान जैसे हुआ | वर्मा जी की धर्मपत्नी बहुत खुश थी | अभिषेक को लगा कि शायद उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा देखकर वो इतना खुश हैं लेकिन अभिषेक गलत था | वर्मा मास्टर जी ने बताया कि उनके लड़के का भी आज रिजल्ट आने वाला है जो शहर के सबसे बड़े विद्यालय में ग्यारहवीं में पढता है |

वर्मा मास्टर से औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने जाने की अनुमति माँगी तो मास्टर साहब रोकते हुए बोले कि थोड़ी देर और बैठो | उन्होंने कहा कि उनका बेटा रोहित भी आ ही रहा होगा ,जिसे उन्होंने कल ही बोल रखा था कि मार्कशीट लेकर आते वक्त स्वाद सरोवर से दो किलो गुलाब जामुन लेकर आना | इसका सीधा-सादा मतलब था वर्मा मास्टर अभिषेक और गुरप्रीत के सामने अपने बेटे के पास होने की ख़ुशी सेलेब्रेट करना चाहते थे |

गुरप्रीत स्वाद सरोवर के गुलाब जामुन का अनुमान कर लार टपकाने ही वाला था कि रोहित तेजी से अंदर आया और सीधे अपने कमरे में चला गया | अभिषेक को किसी दुर्घटना का आभास हो रहा था और गुरप्रीत का दिमाग गुलाब जामुन पर अटका था | वर्मा मास्टर की पत्नी अंदर गयीं, फिर रोते हुए बाहर आयीं और मास्टर साहब को अंदर जाने का इशारा किया | वर्मा मास्टर सकपकाए से अंदर कमरे में घुसे और दो मिनट में मुँह से पसीना पोछते हुए बाहर आ गए | अभिषेक समझ गया कि रोहित ग्यारहवीं में लटक गया | गुलाब जामुन का ख्याल छोड़कर गुरप्रीत ने हिम्मत करके वर्मा मास्टर से पूछा कि क्या हुआ मास्टर जी ?

वर्मा मास्टर दबे स्वर में बोले कि बड़ी दुःख भरी खबर है,पता नहीं कैसे रोहित फेल हो गया ? मास्टर साहब का इतना कहना था कि तमतमाते हुए रोहित बाहर आया और बोला कि फेल हुआ नहीं, जानबूझकर फेल किया गया | यह सब गणित वाले मास्टर की कारस्तानी है और थोड़ी आपकी भी गलती है | आँसुओं से भरी आँखों को पोछते हुए रोहित ने कहा जब नवम्बर में गणित वाले मास्टर ने मुझे अपने यहाँ ट्यूशन पढ़ने के लिए संकेत किया था तो मैंने आपके कहने पर मना कर दिया | आपका कहना था कि फिजूल में दो सौ रूपये खर्च करने की कोई जरुरत नहीं है | आज उन्होंने अपना असली रूप दिखा दिया |

वर्मा जी ,सर पर हाथ धरे-धरे बोले कि मुझे मालूम नहीं था कि उस स्कूल के मास्टर इतने हरामी हैं ,हरामी सुन कर अभिषेक थोड़ा सा मन ही मन मुस्कुराया | गुरप्रीत तो ठहाका मार देता इससे पहले अभिषेक ने वर्मा मास्टर का पैर छुआ और बाहर निकल आया | रिक्शे पर बैठे-बैठे गुरप्रीत कुछ नई गलियों का दोहराने का अभ्यास करने लगा और अभिषेक अपने हाईस्कूल वाले मास्टर साहब को याद कर के भावुक हो गया |

 

विनोद पाण्डेय

 

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