संपादकीय

आगे बढ़ना चाहिए | कुछ की मनुष्य होंगे जिसकी सारी मनोकामना पूरी होती हो,जिसके सारे कार्य सिद्ध होते हो ,जिसका हर उद्देश्य पूरा होता हो | इसलिए संतोष सबसे जरुरी है | कुछ लोग असफलता को बर्दाश्त नहीं पाते वो सच्चे मायने में जीवन की सार्थकता को समझ नहीं पाते हैं | सफलता और असफलता आगे पीछे चलते हैं | दोनों का समावेश संभव है इसे स्वीकार करना ही जीत का मूल मन्त्र है | असफलता आपको और मजबूत करने के लिए होती है ,आपको अपनी गलतियों को समझने का अवसर देती हैं | यदि कोई मनुष्य इससे सीखता है तो आगे सफलता निश्चित है |

पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि नौजवान हुनरमंद लोग एक असफलता से निराश होकर जीवन समाप्त कर लेते हैं | यह कैसी निराशा जो आगे के सभी संभावनाओं के द्वार बंद कर दे ? आशा की किरण कैसे आएगी जब सब कुछ समाप्त हो जायेगा ? यह समझने और अनुभव करने की बात है | सामान्य व्यक्ति तक यह सीमित हो तो उनकी मानसिक स्थिति और जीवनचर्चा पर अध्ययन कर उन्हें उस स्थिति से निकाला जा सकता है | किन्तु अब यह सिलसिला तो यह विद्वान ,विचारशील और बड़े बड़े महापुरुषों तक में पाया जाने लगा है | पिछले दिनों एक संत महापुरुष द्वारा की गयी आत्महत्या भी चर्चा का विषय था | जो सबको बेहतर ढंग से जीवन जीने का आदर्श बताते रहें वो एक निराशा से अपने जीवन को समाप्त कर लिए | कई कलाकार ,कई अधिकारी ,कई मेघावी छात्र छोटी-छोटी परेशानियों से तंग होकर जीवन समाप्त करने लगे हैं तो यह चिंतन और मंथन का विषय है कि जीवन के सार्थक महत्त्व को हम समझ भी पा रहे हैं या नहीं | आखिर परेशानियाँ भी स्वयं चल कर नहीं आती और यह भी सत्य है कि  व्यक्ति यदि संघर्षशील रहे,लगा रहे तो से देर सवेर परेशानियों पर विजय प्राप्त ही कर लेगा फिर उसके बाद तो जीवन आनंद ही है न |

इसलिए संतोष और धैर्य सफलता के लिए बहुत जरुरी कहा गया है | फिर चाहे कोई बड़े नाम वाला व्यक्ति हो या सामान्य व्यक्ति जीवन के महत्त्व को समझने का अवसर प्राप्त करेगा | निराशाओं से घबरा कर दुनिया छोड़ देना कायरता है | यदि व्यक्ति उस निराशा पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ता है तो आशा की किरण भी दिखाई देती है और दूसरों के लिए मिशाल भी बनता है |

 

डॉ रमा शर्मा

जापान

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