संपादकीय – हिंदी की गूँज

धीरे-धीरे संभलने का वक्त आया है धीरे-धीरे सुधरने का वक्त आया है

पिछले दो वर्षों में बहुत कुछ बदल गया | हम बदल गए ,हमारे सोचने का नजरिया बदल गया | पूरी दुनिया में एक भूचाल सा आ गया जिसके कारण कई लोग टूटे ,कई लोग बिखरे ,कई लोग बदले ,कई लोग सँवरे,कई लोग सुधरे और जो नहीं सुधरे वो मरे | कोरोना वायरस जब से आया तब से दुनिया में लोगों ने अपनी पहली चर्चा में इसे ही रखा | दूसरी कोई भी चर्चा प्राथमिकता में पीछे ही रही |  न केवल भारत बल्कि पूरा विश्व इस महामारी से जूझ रहा है | हम और आप भी कहीं न कहीं इससे प्रभावित रहे | किसी को ऑक्सीजन की जरुरत थी  ,किसी को प्लाज़्मा की जरुरत थी ,किसी को बेड की जरुरत थी | उफ़ वो फोन कॉल और दर्द भरी आवाजों का दौर | याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं | हम कहीं कुछ मदद करने में समर्थ हुए और कहीं असमर्थ | इस कोरोना ने शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत नुकसान किया | आज भारत दूसरी लहर के खौफ से जूझ रहा है और इधर तीसरी लहर की चर्चा शुरू हो गयी |

यह दौर कब थमेगा यह किसी को नहीं पता लेकिन हमें मन में विश्वास रखना होगा कि जल्द ही इस महामारी का दौर थमेगा | लेकिन एक बात अभी जो दिखाई दे रही है वो यह कि इसके पूरी तरह खत्म होने तक हमें जागरूक रहना पड़ेगा और इसमें कोई दो राय नहीं है कि बहुत हद तक इस वायरस के साथ अपनी जिंदगी चालू रखनी पड़ेगी | हमने कुछ गलतियां की ,सरकारों ने कुछ गलतियाँ की ,समाज में उच्च पदों पर बैठे कुछ लोगों ने गलतियाँ की ,सामान्य नागरिकों ने कुछ गलतियां की | जिसका खामियाजा रहा कोरोना वायरस का यह उग्र तेवर | गलतियाँ यह रही कि हमें इसे बहुत हलके में लिया | पिछली कुछ गलतियों से सरकारें सबक सीख कर काम करना शुरू कर दें और आम जनता भी लापरवाही करने से खुद को जागरूक करें तो कुछ बात बन सकती है |

आज जब सरकार वैक्सीन की बात कर रही है तो हमें इसे लिए आगे आना चाहिए | भारत एक बड़ा देश है यहाँ सबको वैक्सीन लगने में समय लगेगा लेकिन अगर किसी को अवसर मिल रहा है तो वह किसी भी कारण से इस अवसर को जाने न दें | जब हमें पता है कि वैक्सीन ही इसे रोकने का एक माध्यम है तो हमें लोगों को जारूक भी करना पड़ेगा | अभी बहुत से लोग हैं जिनकी मानसिकता है वैक्सीन न लगवाने की जो सरासर गलत है | वैक्सीन से ही आप सुरक्षित हैं ,इसे लगवाना आवश्यक है |

इस महामारी के दौर में हमने एक चीज़ और देखी वो यह कि एक वो जहाँ लोग दूसरे की जी-जान से मदद कर रहे थे वहीँ कुछ लोग ऐसे कारनामे किये जिससे मानवता शर्मसार होती है | दवाओं की कालाबाजारी ,ऑक्सीजन की कालाबाजरी ,कुछ डाक्टरों की मनमानी इत्यादि | इस सबसे बढ़कर हमने देखा कि इस महामारी के दौर में अपने भी पराये जैसा व्यवहार करते दिखे | लोग अपनों की मदद से कतराते रहे | अपनों की लाशों को जलाने तक आगे नहीं आये | माँ-बाप की अर्थियाँ लेने तक बहुत लोग नहीं आये | यह बहुत ही दुःखद और मन को खिन्न करने वाले प्रकरण रहे जो तमाम मीडिया के माध्यम से देखने को मिला |

बहुत सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि इस बदलते दुनिया में रिश्ते के मायने भी बदल रहे हैं | कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे संतानों की संवेदनाएं नष्ट हो रही हैं | अपने ही माँ-बाप के साथ पराये से जैसा व्यवहार करना कभी भी अपनी संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा | सभी को सुखी देखने और बराबर सम्मान देने का भारतीय दर्शन आज कुछ अपने ही लोगों की वजह से धूमिल होता दिखाई पड़ रहा है | इस महामारी ने बहुत कुछ दिखाया | कष्ट में ही अपनों की पहचान होती है,शायद इक्कीसवीं सदी के लोग इस बात को बहुत अच्छे से समझ गए हैं और भविष्य में इससे सीख मिलेगी |

बहुत कुछ बातें है लेकिन कुल मिलकर बस यही कहना है कि कोई भी संकट का दौर हो उससे सीखने को बहुत कुछ मिलता है | कोरोना महामारी ने भी हमें सिखाया कि हमें अपनी संस्कृति के प्रति उदारता बना कर रखनी होगी | परिवार हमारी संस्कृति की महत्वपूर्ण कड़ी है ,इसे जोड़कर रखना होगा | संकट के समय सबसे पहले अपने ही खड़े रहते हैं | वो भाग्यशाली हैं जिनके अपने इस दौर में साथ थे | लेकिन जिनके अपनों ने उन्हें सहारा नहीं दिया उन्हें इस समय से यह प्रश्न करना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? गलती किसी भी हो ,भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने की सीख लेनी चाहिए | जो अपने नहीं हैं ,उनसे दूर रहना ही बेहतर है और जो अपने हैं उन्हें किसी भी हालत में नाराज नहीं करना है |

मन में विश्वास रखें , अपने आप को इस संघर्ष से उबरने की कोशिश करें | सुबह हो रहा है ,हवाएं चल रही हैं ,जीवन बदल रहा है | जो लोगों ने इस दौरान गलतियाँ की ,लापरवाही किये उनके सुधरने का समय है | सावधान रहें ,सोशल डिस्टेंस का पालन करते रहें और वैक्सीन जरूर लगवाएं |

हिंदी की गूँज हमेशा से सकारात्मक विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए अग्रसर रही है | इस अंक में भी आपको बहुत सकारात्मक रचनाएँ मिलेगीं | अपनी प्रतिक्रियाएँ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं | इक अंक को भी आपका प्यार मिलेगा ,ऐसा विश्वास है |

 

धन्यवाद

 

रमा शर्मा

प्रधान संपादक ,

हिंदी की गूँज

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