मुआवजा

भुखमरी से मौत की खबर निरी अफवाह के सिवा कुछ नहीं लगती थी। खाद्यमंत्री ने पिछले सत्र में सदन के समक्ष रिकार्ड तोड़ खाद्यान्‍न होने की घोषणा की थी। विरोधी दलों का दुष्‍प्रचार या शरारती तत्‍वों की खुराफात भी हो सकती है। आज के जमाने में भूख से कौन मरता है? जरा सी मेहनत करके कमाया-खाया जा सकता है। काम करने वालों के लिए काम की कमी नहीं है। मरियल से मरियल रिक्‍शे वाले तक कमा-खा रहे हैं।

चुनाव सर पर था। विधायक जी यहॉं से लगातार दो बार चुने गए थे। क्षेत्र की जनता के बीच उनकी पैठ की जानकारी लखनऊ तक थी। लेकिन इस तरह की घटना ऐन वक्‍त पर पॉंसा पलटने की कुव्‍वत रखती है। हाईकमांड से स्‍पष्‍ट निर्देश आया कि जैसे भी हो मामला को बढ़ने न दिया जाए। चक्‍का–जाम, रेल की पटरी पर धरना, राजमार्ग पर लाश रखकर हंगामा करना और कलेक्‍ट्रेट पर प्रदर्शन जैसी बातों की गुंजाइश शुरू में ही खत्‍म कर देनी होगी। अगर बात बिगड़ती है तो उनका टिकट भी कट सकता है। अगली बार अपनी सरकार बनने पर मंत्री पद मिलने का सुअवसर था। लेकिन अर्श से फर्श पर आने में देर कहॉं लगती है।

क्षेत्र के अधिकारियों का दल घटना-स्‍थल यानि मृतक के घर पहुँचा। गोद में बच्‍चे को लेकर सुबकती विधवा और बेजुबान प्राणी की तरह घर आए लोगों को किवाड़ से सटकर देखते कुपोषण के शिकार दो और बच्‍चे पहली नजर में ही घर का विहंगम दृश्‍य प्रस्‍तुत कर रहे थे। दल के प्रमुख ने बच्‍चों को वात्‍सल्‍य भाव से पुचकारा और एक कनिष्‍ठ कर्मचारी को उनके लिए मिठाई लाने को अपनी जेब से पैसा दिया। मृतक की बेवा से सहृदयतापूर्वक हालचाल पूछा। उसके एक अधीनस्‍थ ने औरत के पैरों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘’हजूर जरा देखिए…।’’ उसके पैरों में कड़े थे। किस धातु के कड़े थे यह सुनिश्चित नहीं था।

‘’क्‍या है…?’’ अधिकारी खीझ उठा।

‘’सर औरत के पास गहने…! घर के अन्‍दर देखिएगा तो शायद और भी कुछ मिलेगा।’’ अधीनस्‍थ काना-फूसी वाले अंदाज में उसके कानों के जितना नजदीक पहॅुच सकता था उतना सरक कर बोला। अधिकारी को ऐसे अवसर पर आयकर अधिकारी की तरह जॉंच करना मुनासिब नहीं लगा। इसलिए उसने ऑंखों ही ऑंखों में उसे फटकारा।

औरत के कड़े देखने वाला कर्मचारी तक यह भॉंप नहीं पाया कि उसकी गोद में पड़ा बच्‍चे को बुखार है।

लेकिन जब दल के एक अन्‍य कर्मचारी ने जो स्‍थानीय होने की वजह से जमीनी हकीकत का बेहतर ज्ञान रखता था, यह बताया कि मृतक अपनी असंयत मदिरापान की आदत के कारण पहले से ही बीमार रहता था तो अधिकारी के विचार बदलने लगे।

‘’सर ये लोग जिस ट्राइब के हैं वहॉं पैसे न होने पर भी पानी की तरह दारू पी जाती है।’’ वह बड़े आत्‍मविश्‍वास से बोला। फिर जरा विनोदपूर्ण लहजे में बोला, ‘’इधर यह बात मशहूर है कि यहॉं इतना अनाज और दूध-दही होता है कि मर्द दस नंबर के जूते पहनते हैं।’’

‘’नो-नो…आप अपने को अपडेट कीजिए।’’ अधिकारी वास्‍तव में उच्‍च विचारों वाला था। ‘’इन बच्‍चो को देख रहे हैं? जरा घर की हालत देखिए।’’

सरकारी सेवा में लगे लोगों को आखिर क्‍या चाहिए। शाम को घर जाते वक्‍त मानसिक शांति, म‍हीने के अन्‍त में तनखाह और साल के अन्‍त में सेवा पंजिका में अनुकूल टिप्‍पणी। दल का प्रमुख अपने अधीनस्‍थों को इस मामले में जरा भी कोताही बरतने से सावधान कर रहा था। दल इस निष्‍कर्ष पर पहुँचता दिख रहा था कि आश्रित मुआवजे के हकदार हैं। खासतौर पर राजनीतिक द्दष्टि से संवेदनशील मुद्दे पर नौकरशाही की घिसी-पीटी लीक नहीं चलेगी। इस बात की अच्‍छी खासी संभावना थी कि विधायक जी स्‍वयं मृतक के घर पधारकर कुछ सहायता देंगे।

मृतक रमई की टोली के लोग गुस्‍से में थे। अकिंचन लोगों का हजूम क्रोध में विकृत मुख के साथ विपरीतार्थक का उच्‍चारण करता हुआ बेहद अशोभनीय दिखता है। अनुभवी राजनीतिज्ञों को मालूम होता है कि जनता गुस्‍से में हाथी की तरह हुल देकर किले की ईंट से ईंट बजाने की ताकत रखती है। सत्‍तानसीनों को इससे भयभीत होना स्‍वाभाविक है। इन नौकरशाहों का क्‍या है। इनका सेवाकाल तमाम सुरक्षा प्रावधानों से सुसज्जित है। उन्‍हें कौन सा जनता की अदालत में जाना है।

गैरजिम्‍मेवारी के आरोप में फौरन क्षेत्र के दो संबंधित अधिकारी निलंबित किए गए। चार अन्‍य का दुर्गम स्‍थानों पर स्‍थानान्‍तरण किया गया।

मुनिया को सांत्‍वना देने के लिए टोले की महिलाऍं घेर कर बैठी थीं। कम से कम कुछ दिन तो धीरज बँधाए। ‘’सरकार से अभी तक कुछ नहीं मिला?’’ एक ने सहानुभूति भरे स्‍वर में पूछा। लेकिन साथ में टोह लेने का अंदाज छलक ही पड़ा। बदले में मुनिया रो पड़ी। सभी जिसमें वह महिला भी शामिल थी उसे तत्‍क्षण हमदर्दी जताने लगीं।

एक तर्जुबेकार स्‍त्री ने उसके कान में फुसफुसाकर कहा,’’सरकारी लोग जब तेरे घर तॉंक-झॉंक करने आए तो सब चीज छिपा देना नहीं तो वे एक दमड़ी नहीं देंगे।’’ यह सुनकर मुनिया का जी धक से हा गया। उसने अपने दोनों छौनों को मोह भी नजर से देखा। वे चूहेदानी में फँसे निरीह चूहे की तरह अपनी मॉं को एकटक देख रहे थे। रूलाई रोकते हुए वह बस सर हिलाकर रह गयी। लोग पितृपक्ष में छप्‍परों पर खाने की सामग्री फेंकते हैं ताकि कौए के रूप में स्‍वर्ग से आए उनके पूर्वज खा सके। उसके पास तो जिंदा लोगों के लिए सूखी रोटी के लाले पड़े थे। कई दिनों से आधा पेट खाकर खटने के कारण उसका पति चल बचा।

इस सत्र में विधानसभा में घमासान मचा। विपक्ष मुख्‍यमंत्री से खाद्यान्‍न की कमी न होने के बावजूद भूखमरी की घटना पर श्‍वेतपत्र की मॉंग कर रहा था। मार्शल की मदद से कुछ विपक्षी सदस्‍यों को बाहर करने की नौबत आयी। विपक्ष ने सत्र में काम न होने देने की धमकी दी। इस अल्‍टीमेटम के बाद सरकार को सोचने पर मजबूर होना पड़ा। अन्‍त में विपक्ष की बात को आंशिक रूप से मानते हुए खाद्यमंत्री को मृतक के यहॉं भेजना तय हुआ। साथ में क्षेत्र के विधायक भी होंगे।

जिस दिन मंत्री महोदय का आगमन था, टोले का पूरा कायाकल्‍प हुआ। अधिकारीगण मुनिया का बैंक अकाउण्‍ट पहले ही खुलवा चुके थे। चेक की राशि आखिर उसी में जमा होनी थी।

मंत्रीजी की गाडि़यों का काफिला थोड़ी दूर पर रूक गया। आगे गाड़ी जाने लायक रास्‍ता नहीं था। मनमाफिक बाइट लेने के आतुर कैमरे से सुसज्जित पत्रकारों को मंत्रीजी से फासले पर रखने के लिए पुलिसकर्मियों को हलका बलप्रयोग करना पड़ा। इसे पुलिसिया बर्बरता घोषित करके खुर्राट पत्रकार ताव खा गए। सौम्‍य मुद्रा धारण किए सुदर्शन व्‍यक्तित्‍व के स्‍वामी मंत्रीजी धवल वस्‍त्रों में अत्‍यन्‍त शालीन लग रहे थे। उन्‍हें मालूम था कि राजनीति में अपनी यश-कीर्ति का शिलान्‍यास बारंबार करने की आवश्‍यकता पड़ती है। उन्‍होंने फौरन पुलिस को उन्‍हें रोकने से मना किया। लोकतंत्र में जनता और जनसेवक के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं होनी चाहिए। उनका यह आप्‍त वाक्‍य अत्‍यंत सामयिक सिद्ध हुआ क्‍योंकि पत्रकारों का गुस्‍सा सीमा से बाहर नहीं गया।

‘’मुनिया बाहर आ। जरा देख कितने लोग आए हैं।‘’ उसकी पड़ोसन खुशी और जोश से जरा चिल्‍लाकर बोली। वह हड़बड़ा गयी। पड़ोसन ने देखा कि वह अनाज से करीब एक चौथाई भरे एलमुनियम के भगोने को कोठरी के गड़ढ़े में छिपा रही थी। शायद कल रात में उसने गड़ढ़ा खोदा था। बगल में फूल की एक तश्‍तरी भी थी। उसे भी जमीन में दफनाने का इरादा होगा। इस बर्तन का शायद कोई खरीदार नहीं मिला होगा। पड़ोसन यह देखकर अनायास ठिठक गयी। मुनिया के चेहरे पर कातरता के भाव थे। कहीं वह सबको उसकी संपदा के बारे में बता तो नहीं देगी। दोनों कुछ पल एक-दूसरे को ताकती रहीं।

जमीन पर साड़ी बिछाकर लिटाए गए उसके सबसे छोटे बच्‍चे का बुखार अभी तक उतरा नहीं था।

 

 

 

(मनीष कुमार सिंह)

एफ-2, 4/273, वैशाली, गाजियाबाद,

उत्‍तर प्रदेश। पिन-201010

8700066981

ईमेल:manishkumarsingh513@gmail.com           

Related posts

Leave a Comment