दुल्हन के लिबास में लिपटी सिमटी-सकुचाई वसुधा को ,ससुराल विदा होते समय उसकी माँ ने एक गुरु मंत्र दिया – ” बेटा यह सृष्टि का अटल सत्य है कि विवाहोपरांत ससुराल की हर लड़की का असल घर होता है। जीवन में कभी किसी की बात बुरी लगे, फिर चाहे सामने वाला कितना भी गलत क्यों ना हो ? या किसी का व्यवहार तुम्हारे प्रति रुखा हो , तुम कभी पलट कर उसे जवाब या बहस मत करना । ‘सबसे भली चुप ‘ ! इस मंत्र को यदि साध लोगी तो जीवन सुखमय बन जाएगा। ” रोती बिलखती वसुधा माँ का ममतामयी आंचल छोड़ ससुराल की देहरी में प्रवेश कर गई ।
नई जगह , नई लोग ,सब कुछ पहले से बिल्कुल अलग। यह वसुधा के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी जहाँ उसकी चाल -ढाल ,उठने-, बैठने आचार -व्यवहार सब में लोगों की पैनी दृष्टि होती। शीघ्र ही उसने ससुराल की आदतों को आत्मसात कर लिया। इसके पीछे भी माँ की दी गयी शिक्षा थी- ” बेटी ससुराल का अर्थ है तुम्हारा पुनर्जन्म ! मतलब वहाँ की बातें मायके से बिल्कुल अलग होंगी। यदि जीवन में शांति चाहती हो तो नव-जीवन की शुरूआत स्वयं को ज़ीरो समझ कर करना …….. | ”
आज सुबह से ही वसुधा काफी उत्सुक और प्रफुल्लित थी । आखिर उसकी माँ जो मिलने आ रही थी, इसलिए जल्दी- जल्दी सारा काम निपटा रही थी । भीषण गर्मी के चलते सूर्य देव सुबह से ही आग उगल रहे थे। वसुधा फ़्रिज में पानी की बोतलें लगा रही थी कि तभी पास बैठी सासू माँ तपाक से बोली – ” बहू ! तुमने तो सारी बोतलें उल्टी लगा दी है , यह तुम्हारे मायके का रिवाज़ होगा , हमारे यहाँ बोतलें ऐसे नहीं लगायी जाती। आखिर कितनी बार हर बात याद दिलानी होगी तुम्हें ?? ”
इधर सास का ताना उधर दहलीज़ पर वसुधा की माँ ! वसुधा अवाक भाव से किंकर्तव्यविमूढ़ सी देखती ही रह गई। उसका समस्त उत्साह आंसुओं के माध्यम से बह निकला, नन्ही बालिका सी माँ से लिपट गई। यह प्रथम मिलन इतना करुणादाई होगा किसी ने सोचा ही नहीं था। भीतर आते-आते वसुधा की माँ अत्यंत सहज भाव से बोली- ” बिल्कुल ठीक कहा बहनजी आपने ! जो शिक्षा आप आज इसे दे रही हैं ना ! मैं कभी दे ही नहीं पाई। इतने कम समय में जो तौर-तरीके यह सीख पायी है ,उसका सारा श्रेय सिर्फ और सिर्फ आपको ही जाता है। ”
मदिर – मदिर मुस्काती माँ की ओज पूर्ण वाणी सुन वसुधा की सास बीच में ही बोल उठी ” कितनी महान हैं आप और आपके संस्कार ! एक माँ आज दूसरी माँ के समक्ष शर्मिंदगी का भाव लिए नतमस्तक खड़ी थी।
डॉ दीप्ति जोशी गुप्ता