झूलती साँझ, झूले पर उगा,
झुनझुनियाँ गुलमोहर….
उसकी आँखों में सुनहले गुलमोहर की लाली छा गई.दिल में घुटन हुई.स्मृतियों का बवंडर उठा,अंखियों की तलैया में अश्रुओं का सोता फुट पड़ा।सामनेवाली छत पर झूलता झुला और वियुक्त खालीपन आंसुओं के मारफत मानो असबाब-सा उड़ पड़ा…
बांध पूर्णत: टुटा, जलप्रपात बह निकले, उससे पहले वह घर आ गई।चारपाई पर बैठ ग।.जब वहां से आखिरी बार गुजरी तब झुला रुनक झुनक सांकल से शोभायमान था।
दिन के निकलते ही परस्पर हो जाती आँखों की गुफ्तगू…शाम को कोफी के मग से उभरती बाष्प से गीली बातें…देर से शय्या में जाते ही स्वप्निल रातें!
नया शहर,नया काम,लोग अनजान.अब, यह, सब,परिचित मोहल्ला और पहचान बनकर नसनस में बस गया था, नशा बनकर उभरने लगा था !
शनिवार का दिवस था।अहमदाबाद के मुहल्ले में शाम जल्द ही उतर आयी थी। दफ्तर से लौटते हुए गली के नुक्कड़ पर अजीब सी चहलपहल देखी। टी.वी. पर समाचार सुलग रहे थे कि अहमदाबाद का पूर्वी क्षेत्र कौमी तनाव में होम हो चूका है। गली के नुक्कड से उभर रही बेचैनी और समाचार के तालमेल बिठाये, उससे पूर्व ही तेज चिल्लाहट करते हुए एक टोला सामनेवाले मकान की सीढियाँ चढ़ गया! एक धमाका…धुंए का गोला…कोफ़ी का मग…झूलता पैर…और झुला बिलकुल विषम गति में झूल गया!
सफ़ेद कुर्ता पाजामा लाल रंग में भीगा और यह लाल रंग वृत्ताकार फ़ैल गया। पर्ण फूटे। सामनेवाले घर के आँगन में गुलमोहर पनपा…लालचटक।
उस लाली को कहाँ छुपाये ??
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डॉ.नयना डेलीवाला, अहमदाबाद. संपर्कः 0-9327064948,9727881031