मेहबूबा

‘चलिए, जल्दी कीजिए, गाड़ी का समय हो गया है। आपका सामान चेक करके चढ़ना। वापिस लौटकर आना मिले भी या नहीं भी।गाँव के जो भी लोग मिले उसे यह बता देना।’ कहते हुए स्टेशन मास्टर रेल के स्टेशन पर दौड़ रहे थे। हिंदुस्तान से पाकिस्तान ट्रेन जा रही थीं।ये बात है 1948 के अगस्त माह की, जब भारत दो टूकडों में बँट रहा था। हिंदुस्तान और पातिस्तान के बीच रेखांकन करनेवाले ने दोनों देश की भौगोलिक स्थिति को बिना जाने ही रेखा खींच दी थीं। यह बात उस गाँव की…

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गुलमोहर

झूलती साँझ, झूले पर उगा, झुनझुनियाँ गुलमोहर….   उसकी आँखों में सुनहले गुलमोहर की लाली छा गई.दिल में घुटन हुई.स्मृतियों का बवंडर उठा,अंखियों की तलैया में अश्रुओं का सोता फुट पड़ा।सामनेवाली छत पर झूलता झुला और वियुक्त खालीपन आंसुओं के मारफत मानो असबाब-सा उड़ पड़ा… बांध पूर्णत: टुटा, जलप्रपात बह निकले, उससे पहले वह घर आ गई।चारपाई पर बैठ ग।.जब वहां से आखिरी बार गुजरी तब झुला रुनक झुनक सांकल से शोभायमान था। दिन के निकलते ही परस्पर हो जाती आँखों की गुफ्तगू…शाम को कोफी के मग से उभरती बाष्प…

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