संपादकीय

आज सारी दुनिया में कोलाहल मचा है | एक वायरस ने सभी को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि जीवन का सुख क्या है ? पैसा कमाने और जुटाने की जद्दोजहद में भाग रहे आदमी को अब समझ में आ रहा है कि जीवन की आवश्यकताएँ कितनी सीमित हैं | भीड़ का चेहरा बने हुए सेलेब्रेटी को आज भीड़ से ही डर लग रहा है | यह कोई वायरस हो या  कोई जैविक हथियार हो या किसी तरह की प्राकृतिक आपदा | एक बात तय है इस वायरस में आज के मनुष्य को बहुत कुछ सिखा दिया | अपने परिवार का मतलब लोग खूब अच्छे ढंग से समझ सके | हर प्राणी में जीवन की अनिश्चितता से भयभीत है | ऐसे में साहित्य की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है | कविता हर दौर से मानव को विकट परिस्थिति से जूझने की शक्ति प्रदान करती है | वर्तमान में लिखा गया साहित्य भविष्य की पीढ़ियों के लिया सीख बनेगा | मनुष्य के ह्रदय में भावनाओं का समंदर हर वक्त हिलोरे लेता है उसे कोई बाँध नहीं सकता | आज इस मुश्किल परिस्थिति में भी मनुष्य के विचार एक जगह से दूसरी जगह यात्रा कर रहे हैं | केवल रूप बदला है | वो रूप कविता भी हो सकती है ,कहानी भी हो सकती है ,संस्मरण भी हो सकता है | कोई भी विधा हो सकती है यहाँ तक कि यह यात्रा सामान्य बातचीत के रूप में भी हो सकती है | आइये हिंदी की गूँज के माध्यम से हम उसी यात्राओं के साक्षी बने जहाँ शब्द और भाव साथ-साथ चल रहे हैं और शिल्प उनके राहों की सुंदरता को निखार रहा है |

 

समय हर घाव को भर देता है

बस उसके निशान ही रह जाते हैं

जिंदगी के एहसासों को भी क्या कहें

समय के साथ वो भी बदल जाते हैं

लगाते हैं चेहरों पर जो होली में गुलाल

समय गुजरते ही वो भी दाग नजर आते हैं

 

कुछ मौन मुखरित हो गये
कुछ बोल गूंगे हो गये
सुनने वालों ने सुन लिया
समझने वालों ने समझ लिया ….. ..

 

रमा शर्मा

जापान

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