ग़ज़ल

 

लगता नहीं है दिल कहीं  तेरे जहान में।

तुझको पुकारूं रात दिन अपनी अज़ान में।।

 

बेबस हुआ है बाप ,बुढ़ापा बिगड़ गया,

बहुएँ लड़ें हैं घर में , तो  बेटे दुकान में।

 

जख़्मी हुई है ज़िंदगी हर सांस पर यहाँ,

तूने चढ़ाये तीर थे  कितने कमान में।

 

चाँदी सभी ने बाँट ली,सोना बँटा सभी

तस्वीर छोड़ी बाप की उजड़े मकान में।

 

चहरा बुझा-बुझा हुआ, आँखे उदास हैं,

क्या  ज़िंदगी ये आ गई अपनी ढलान में।

 

हमने बुलाया जो उन्हें पढ़ने कलाम इक,

आधी घड़ी गुज़ार दी खुद के बख़ान में।

 

कैसे छुआ था आसमां “आशा” बता ज़रा,

काटे गये थे पर तेरे पहली  उड़ान में।

 

  • आशा पाण्डेय ओझा

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