राज की बात

शहर के तपते प्रहर में,

छांव देता कौन किसको।

शक के घेरे घूरते है,

ठाँव देता कौन किसको

नीर निर्मल,पीर उज्ज्वल,

नीड़ स्वर्णिम पांव जिसको।

संग मेरे चल के देखो,

देखना है गांव जिसको।

 

दिल की बातें थी बताई,

मानकर हमराज जिसको।

तीर उसने ही चलाई,

क्या बताये और किसको।

राज रखना दर्द अपने,

मुक्त कर दो तुम खुशी को।

चाह गर हमदर्द की है,

भूल जाना बेबसी को ।

 

चार दिन की जिन्दगी में,

थे सुने छल-छिद्र जिसको,

रेत मुट्ठी के थे सारे,

रख न पाए पास जिसको,

नेकियाँ कर भूल जाओ,

पूण्य कहते है इसी को,

रोक लो गर रोक सकते हो,

हृदय में तुम खुशी को।

 

 

रश्मि रामेश्वर गुप्ता,

बिलासपुर, छत्तीसगढ़

Ph no- 9755252605

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