ग़ज़ल

पाने की आरज़ू थी उसे,  अब नहीं रही ख़ुशियों भरे वो दिन वो हसीं शब नहीं रही जाने हुआ है क्या कि मेरा  प्यार खो गया मैं भी, अगरचे, पहले थी जो अब नहीं रही क़िस्मत से लड़ रही हूँ, शिकायत कभी न की दुश्वारी आदमी को भला कब नहीं रही रखती नहीं ज़ियादा उमीदें किसी से मैं तुझ से भी कुछ तवक्को, मेरे रब, नहीं रही (तवक्को = आशा) हसरत, न आरज़ू, न तमन्ना, न जुस्तजू मन में किसी की ‘कामना’ ही अब नहीं रही   कामना मिश्रा दिल्ली,…

Read More